Friday, May 28, 2021

तीन वरदान

A három kivánság - तीन वरदान 



प्राचीन समय की बात है एक गाँव में एक ग़रीब पति-पत्नी रहते थे। दोनों जवान थे और एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, लेकिन ग़रीबी के कारण आपस में झगड़ते भी बहुत थे।  

एक शाम पत्नी ने भोजन पकाने के लिए चूल्हा जलाया। आग पर रखा पानी अभी गरम भी नहीं हुआ था कि उसका पति घर आ गया। पति ने ख़ुशी से नाचते हुए अपनी पत्नी से कहा- "तुम्हें मालूम भी है कि क्या हो गया है? हमारी ग़रीबी का अंत हो गया है, अब हम जो कुछ भी माँगेंगे हमारी आँखों के सामने होगा।"

"फालतू मज़ाक मत करो, तुम्हें हीरे-जवाहरात मिल गए हैं क्या?" -पत्नी ने पूछा। 
"मुझ पर विश्वास करो और मेरी बात ध्यान से सुनो। आज जब मैं जंगल से बाहर आ रहा था, जानती हो मैंने क्या देखा? वहाँ मिट्टी वाली दलदल में एक सोने की बग्घी फँसी हुई थी, बग्घी को चार शानदार काले कुत्ते खींच रहे थे। बग्घी में एक बहुत सुन्दर औरत बैठी थी, उस औरत ने मुझसे कहा- "तुम भले आदमी लगते हो, इस दलदल से निकलने में हमारी मदद करो, यक़ीन मानो तुम्हें पछतावा नहीं होगा।"
मैंने उसकी मदद कर दी, जिससे ख़ुश होकर उसने मुझे इनाम दिया और कहा-  "अपनी पत्नी को जाकर बताओ कि वह कोई भी तीन वरदान माँग ले, तीनों वरदान पूर्ण होंगे" -उसके बाद वह हवा की तरह उड़ गयी। अब तुम जल्दी से कुछ माँगो। 
पत्नी ने जल्दबाजी में पहला वरदान माँगा- "अच्छा होता अगर हमारे पास एक सॉसेज होती और वह इन गरम कोयलों पर जल्दी भुन जाती।" 
अभी उसने यह बोला ही था, कि चूल्हे पर एक फ्राईपैन आ गया और उसके अंदर सॉसेज।  
"हमें कुछ अक़्ल से काम लेना चाहिए, दो गाय, दो घोड़े, दो कुत्ते...."      -पति ने हड़बड़ा कर कहा। 
बातें करते-करते ग़रीब किसान ने आग को हिलाया जिससे कि जलते कोयलों से अपना सिगार जला सके लेकिन वह इतना गँवार था कि उसने  फ्राईपैन को ही सरका दिया और सॉसेज आग में गिर गयी। 
यह देख कर पत्नी ज़ोर से चीख़ी- "यह क्या किया तुमने, इससे अच्छा तो सॉसेज तुम्हारी नाक पर उग जाती।"
तभी एक पल में सॉसेज ग़रीब किसान की नाक से चिपक गयी। 
"देखा तुमने मूर्ख औरत, तुम्हारा दूसरा वरदान भी बेकार गया, अब हटाओ इसे" -पति ज़ोर से चीख़ा। उन्होंने सॉसेज को खींचा, हिलाया-डुलाया लेकिन  सॉसेज नाक से नहीं उतरी। उनकी सारी कोशिशें बेकार गयी। 
"लो, अब तो तुम्हें सारी ज़िंदगी अपनी नाक पर सॉसेज लगाए जीना पड़ेगा"
"यह कैसे हो सकता है, जानती हो तुम्हें क्या करना है? अभी भी एक वरदान शेष है। वरदान माँगो कि सॉसेज वापिस फ्राईपैन में चली जाए।" 
"तो फ़िर गाय, घोड़े, कुत्तों का क्या होगा?"
"अब सब बेकार है। मैं इतनी बड़ी मूँछ लगा कर नहीं घूम सकता, जल्दी से वरदान माँगो।" 
क्या होना था और क्या हो गया, बेचारी किसान की पत्नी इसके अलावा और क्या माँग सकती थी कि सॉसेज उसके पति की नाक से गिर जाये। 
उन्होंने सॉसेज को धोया, पकाया और स्वाद लेकर आख़िर तक खाया। कुछ सालों में उनमें समझौता हो गया और फ़िर वे कभी नहीं लड़े। 
दोनों मेहनत से काम करने लगे और धीरे-धीरे उन्होंने गाय, घोड़े और कुत्ते, सभी कुछ ख़रीद लिया। 


अनुवादक- इन्दुकांत आंगिरस

हंगेरियन लोककथा

लोमड़ी और बत्तखें

 A róka és a kacsák -  लोमड़ी और बत्तखें 


 एक बार एक लोमड़ी घूमते-घूमते झील के किनारे आ पहुँची। झील में बत्तखें तैर रही थीं। 

बत्तखों को देखते ही लोमड़ी के मुहँ में पानी आ गया। लोमड़ी सोचने लगी कि किसी तरह एक बत्तख खाने को मिल जाये। वह जानती थी कि बत्तखें काफ़ी जिज्ञासु हैं इसलिए उसने ऊँची आवाज़ में उनसे कहा-  "मेरे नज़दीक आओ, मैं तुम्हें दिलचस्प कहानियाँ सुनाऊँगी।" 

"हम यहीं से सुन रहे हैं, तुम कहानी सुनाओ"- बत्तखों ने कहा।  

"लेकिन तुम लोग बहुत दूर हो, मैं इतनी ज़ोर से नहीं चिल्ला सकती। तुम में से कोई एक मेरे करीब आओ, मैं उसे कान में कहानी सुना दूँगी और वह दूसरी बत्तखों को सुना देगी, लेकिन सिर्फ़ समझदार बत्तख को मेरे पास भेजना क्योंकि मूर्ख  बत्तख तो रास्ते में ही कहानी भूल जाएगी।"  -लोमड़ी ने बत्तखों से कहा। 

यह सुनते ही सारी बत्तखें झील के किनारे पर आ गयीं क्योंकि हर बत्तख अपने आपको समझदार दिखाना चाहती थीं। लोमड़ी ने सबसे नज़दीक वाली बत्तख को झपट्टा मारकर पकड़ लिया और शेष बत्तखें झट से तितर-बितर हो गयीं। 

अनुवादकइन्दुकांत आंगिरस


(हंगेरियन लोककथा)